Sex Education: युवाओं के लिए सेक्स एजुकेशन क्यों ज़रूरी? विशेषज्ञों ने बताए अहम कारण
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वैज्ञानिक रिपोर्टों के अनुसार, युवाओं में सेक्स एजुकेशन की कमी मानसिक तनाव, गलत धारणाओं और असुरक्षित व्यवहार को बढ़ाती है, इसलिए सही जानकारी बेहद आवश्यक है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि प्रजनन स्वास्थ्य, भावनात्मक समझ और संबंधों में सम्मान बढ़ाने में सेक्स एजुकेशन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे युवाओं की जागरूकता बढ़ती है।
हेल्थ एजेंसियों की सलाह है कि स्कूलों और परिवारों में खुली बातचीत से युवा जिम्मेदार निर्णय ले पाते हैं, जिससे स्वास्थ्य जोखिम कम होते हैं।
नई दिल्ली/ बदलते सामाजिक माहौल और डिजिटल युग में युवाओं के लिए सेक्स एजुकेशन और स्वास्थ्य-जागरूकता अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि युवाओं में वैज्ञानिक जानकारी की कमी न केवल भ्रम पैदा करती है, बल्कि मानसिक तनाव, असुरक्षित व्यवहार और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का जोखिम भी बढ़ाती है। देश भर की स्वास्थ्य एजेंसियों ने इस विषय पर हाल ही में विस्तृत रिपोर्ट जारी कर युवाओं के लिए सही मार्गदर्शन की आवश्यकता पर जोर दिया है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो सेक्स एजुकेशन का उद्देश्य केवल शारीरिक संबंधों की जानकारी देना नहीं, बल्कि भावनात्मक समझ, सीमाओं का सम्मान, सुरक्षा, प्रजनन स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। रिपोर्ट के अनुसार भारत के 16–28 वर्ष के कई युवा ऐसे विषयों पर खुलकर बात नहीं कर पाते, जिससे वे इंटरनेट पर उपलब्ध गलत या अधूरी जानकारी पर निर्भर हो जाते हैं। इससे गलतफहमियों और स्वास्थ्य जोखिमों का खतरा बढ़ जाता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि सही समय पर दी गई वैज्ञानिक जानकारी युवाओं के आत्मविश्वास को बढ़ाती है और उन्हें जिम्मेदार निर्णय लेने में सक्षम बनाती है। इससे न केवल स्वास्थ्य बेहतर होता है, बल्कि संबंधों में सम्मान, सहमति की समझ और भावनात्मक संतुलन भी विकसित होता है।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, सेक्स एजुकेशन युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत करने में भी मदद करता है। आज के तेज रफ्तार डिजिटल वातावरण में युवा कई बार सोशल मीडिया, पीयर प्रेशर और गलत जानकारी के कारण तनाव में आ जाते हैं। ऐसे में सही जानकारी उन्हें सुरक्षित और समझदारी से निर्णय लेने में सहायता करती है।
शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि स्कूलों में हेल्थ-एजुकेशन आधारित पाठ्यक्रम को मजबूत करना समय की जरूरत है। कई विकसित देशों में सेक्स एजुकेशन को स्कूली पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाया गया है। इससे युवाओं में न सिर्फ जागरूकता बढ़ती है, बल्कि यौन संचारित रोगों और अनचाही परिस्थितियों के मामलों में भी गिरावट देखी गई है।
विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि माता-पिता की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। परिवार में खुली बातचीत का माहौल युवाओं को सुरक्षित, आत्मनिर्भर और भावनात्मक रूप से स्थिर बनाता है। स्वास्थ्य संस्थानों का मानना है कि भारत में इस विषय पर झिझक कम करने की जरूरत है ताकि युवा बिना डर या शर्म के अपने स्वास्थ्य संबंधी सवाल पूछ सकें।
रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि हेल्थ मंत्रालय, स्कूल प्रशासन और परिवार मिलकर युवाओं के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाएं, जिससे उन्हें वैज्ञानिक, सुरक्षित और जिम्मेदार जानकारी मिल सके।